॥ जय चक्रधारी ॥
यह अत्यन्त मनमोहक रितिका पीतल उलट सत्ता कड़ा । जैसा यह रूप और सौन्दर्य में अति सुन्दर है वैसे धारण कर्ता के रूप और सौन्दर्य की भी वृद्धि करने वाला है। हालाँकि यह धातु स्वतन्त्र धातु नहीं है अपितु यह दो धातुओं का योग है। जिसमे नाम आता है धातु ताम्बा एवं धातु जस्ता का । यह धातु जिस संयोग से निर्मित होती है तो इसकी तासीर उष्णवीर्य व शीतल हो जाती है। यह धातु दीपन व पाचन को मजबूत करने वाली है। इस धातु की ऊर्जा रक्तपित्त , श्वेत कुष्ठ , यकृत् के दोष , प्लीहवृद्धि , दाह, तृषा, रक्तविकार, प्रमेह , अर्श , संग्रहणी, शूल , पाण्डु , और कृमिरोग में आराम देने वाली है। विशेषतः कफपित्त जनित रोगों में यह व्यवहृत होती है।
ज्योतिषविदों की मानें तो यह धातु मंगल, सूर्य, बुध को ऊर्जाओं से परिपुष्ठ है। यह धातु आत्मबल में बहुत वृद्धि करती है । और भी महत्वपूर्ण बात यह है के जो लोग ऐसे कार्य करते हैं जहाँ शारीरिक सुदृढ़ता बहुत चाहिये या शरीर की धातु पुष्ठ चाहिये जैसे - पहलवान, पुलिस सुरक्षा बल के लोग, सेना के जवान, खिलाड़ी आदि उन्हें तो बिना देरी के पहन लेना चाहिये क्योंकि यह वीर्यनाश-रजनाश से पुरुषों व स्त्रीयों की रक्षा करती है।
यह कड़ा दिखने में तो सुन्दर है ही साथ ही सकारात्मक ऊर्जाओं आकर्षित करने वाला है हाथ की भी शोभा को बढ़ाने वाला है। धारणकर्ता को हाथ में बहुत आरामदायी भी अनुभव करवाता है। आप भी इसको धारण कर इसकी योग्यताओं की पूरी मौज अपने जीवन में ले सकते हैं।
॥ ओ३म का झण्डा ऊँचा रहे ॥